प्रदेश में कई राजकीय विद्यालय भवन जर्जर हालत में, शिक्षा महकमा बना है उदासीन
देहरादून। प्रदेश में कई राजकीय विद्यालयों के भवन जर्जर हालत में हैं। जर्जर विद्यालय भवनों में कभी भी कोई हादसा हो सकता है। बारिश में अधिकांश विद्यालय भवनों की छत टपकने लगती है। शिक्षा विभाग जर्जर विद्यालय भवनों के प्रति लापरवाह बना हुआ है।
जिन विद्यालयों पर उत्तराखंड के भविष्य को तराशने का दारोमदार हैं, उनमें से बड़ी संख्या का अस्तित्व ही दांव पर लगा है। वजह है विद्यालय भवनों की जर्जर हालत। प्रदेश में सरकारी प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के 2500 से अधिक स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। इनमें से कुछ विद्यालय भवनों का मरम्मत या पुनर्निर्माण का काम ही हो पाया है। अधिकांश जर्जर विद्यालय भवनों की कोई सुध नहीं ली गई। प्रदेश सरकार सीमित संसाधनों के चलते अपने बूते इन विद्यालयों का मरम्मत कराने में खुद को समर्थ नहीं पा रही है। हालांकि राज्य सेक्टर में विद्यालय भवनों के मरम्मत के लिए धनराशि दी तो जा रही है, लेकिन इससे हर वित्तीय वर्ष में कम संख्या में ही विद्यालयों की मरम्मत हो पा रही है। विद्यालयों की नैया बदहाली से पार लगाने के लिए केंद्रीय मदद पर निर्भरता ज्यादा है। जर्जर राजकीय प्राथमिक विद्यालय भवनों के जीर्णोद्धार की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। शिक्षा विभाग ने जर्जर विद्यालय भवनों की हालत सुधारने की जहमत तक नहीं उठाई। आलम यह है कि जर्जर छत के नीचे ही नौनिहाल जान हथेली में लेकर पढ़ने को मजबूर हैं।
प्रदेश सरकार की ओर से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के नाम पर न सिर्फ कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, बल्कि हर साल नए प्रयोग किए जा रहे हैं। इसके बावजूद तमाम स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। जर्जर विद्यालय भवनों में सबसे अधिक पौड़ी और अल्मोड़ा जिले में हंै। बरसात में ज्यादातर स्कूलों की छत टपकने लगती है। कुछ विद्यालय भवन तो गिरने की स्थिति में हैं। शिक्षा विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 1,437 प्राथमिक, 303 जूनियर हाईस्कूल और 1,045 माध्यमिक विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। इसमें बागेश्वर जिले में 94, चमोली में 204, चंपावत में 123, देहरादून में 206, हरिद्वार में 170, नैनीताल में 160, पिथौरागढ़ में 193, रुद्रप्रयाग में 128, टिहरी गढ़वाल में 352, ऊधमसिंह नगर में 175 और उत्तरकाशी जिले में 185 स्कूल भवन जर्जर हाल हैं।