विरासत: संध्या काल शिंजिनी कुलकर्णी के कत्थक नृत्य व शास्त्रीय संगीत के जादूगर ओमकार के नाम रहा
1 min readदेहरादून। विरासत महोत्सव 2024 में आज सातवें दिन की विरासत की शुरुआत सर्वप्रथम सुबह स्कूली छात्राओं की शानदार सांस्कृतिक डांस एवं नृत्य के साथ प्रारंभ हुई। छात्राओं की सांस्कृतिक साधना में दी गई आकर्षक एवं शानदार मनमोहक प्रस्तुति ने श्रोताओं का हृदय जीत लिया। विरासत महोत्सव में क्लासिकल म्यूजिक और डांस के साथ ही नृत्य को देखकर जो कला प्रदर्शन सामने आया वह वास्तव में बहुत ही शानदार रहा। संत कबीर एकेडमी की छात्रा अनन्या डोभाल ने अपने नृत्य की प्रस्तुति मोरी गगरिया काहे को फोरी रे श्याम,,,,,,,, के साथ प्रारंभ की प् छात्रा की इस बेहतरीन प्रस्तुति ने सभी का दिल जीता प् इसके अलावा क्लासिकल म्यूजिक और नृत्य की इस आगे बढ़ती हुई श्रृंखला में पावनी जुयाल द्वारा बरसन लागी बदरिया,,,,,, आकर्षक एवं मनमोहक प्रस्तुति के साथ प्रस्तुत किया गया प् नृत्य की इस श्रृंखला में विरासत महोत्सव में बेहतरीन प्रदर्शन आज सभी को देखने को मिला। विरासत के इस क्लासिकल म्यूजिक एवं डांस की शानदार प्रस्तुतियां में श्री गुरु राम राय डिग्री कॉलेज की छात्रा प्रेरणा मौर्य, केंद्रीय विद्यालय की छात्रा गौरी वर्मा, डीएवी महाविद्यालय की छात्रा नेहा अग्रवाल, टचवुड स्कूल की उन्नति पंगवाल के अलावा देवेना दर्शन रावत, मंचत कौर, अन्वेशा आदि ने भी अपनी प्रस्तुति देकर सभी का मन मोह लिया।
विरासत साधना के दूसरे चरण की कड़ी वाले कार्यक्रम के अंतर्गत बीएस नेगी एमपीपीएस ने कमर डागर द्वारा सुलेख पर प्रेरक वार्ता की मनमोहक मेजबानी की। वास्तव में बीएस नेगी एमपीपीएस ने सुलेख पर एक आकर्षक वार्ता की मेजबानी करते हुए विरासत में आज अपनी शानदार एंट्री की और इसका नेतृत्व प्रसिद्ध कलाकार कमर डागर ने किया। कार्यक्रम में एमपीपीएस की प्रिंसिपल नमिता ममगई और विरासत की ओर से विजयश्री और हरीश अवल जैसी प्रतिष्ठित हस्तियाँ शामिल रहीं। डागर प्रसिद्ध चित्रात्मक सुलेखक ने हिंदी और उर्दू लिपियों को मिलाकर एक विशिष्ट दृश्य भाषा बनाने के अपने अनूठे दृष्टिकोण को साझा किया। इन दो लिपियों के बीच कलात्मक तालमेल पर जोर देते हुए हिंदी को बाएं से दाएं और उर्दू को दाएं से बाएं प्रदर्शित किया प् उन्होंने दिखाया कि कैसे वह पारंपरिक सुलेख को एक आकर्षक कला रूप में बदलने की क्षमता रखती हैं। भारत की महिलाओं के लिए सर्वाेच्च नागरिक पुरस्कार,नारी शक्ति सम्मान की प्राप्तकर्ता सुश्री डागर ने महिला अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार और पायनियर आर्टिस्ट अवार्ड भी जीता है। शास्त्रीय संगीत में अपने योगदान के लिए जाने जाने वाले प्रतिष्ठित डागर परिवार से आने वाली ने अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में चित्रात्मक सुलेख को चुना है। भारत, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में उनके उल्लेखनीय कार्य निजी संग्रहों में प्रदर्शित हैं, जो उनकी अभिनव भावना और उनके शिल्प के प्रति समर्पण को दर्शाते हैं। यह कार्यक्रम एक शानदार सफलता थी, जिसमें सुश्री डागर के कला के प्रति जुनून और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने विरासत में मौजूद गणमान्यों को प्रेरित करने का काम किया।
विरासत के सातवें दिन की सांस्कृतिक संध्या का विधिवत शुभारंभ विकास नगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक मुन्ना सिंह चौहान व ओलंपिक काउंसिल ऑफ एशिया के अध्यक्ष व विरासत के संरक्षक राजा रणधीर सिंह ने संयुक्त रूप से दीप जलाकर किया। संध्या काल की कड़ी में हृदय और मन को मोह लेने वाला जौनसारी लोक नृत्य प्रस्तुत किया गया। जौनसारी संस्था श्गांव का रिवाज, के नायक गंभीर भारती ने अपनी सांस्कृतिक टीम के साथ आकर्षक लोक संगीत और नृत्य प्रस्तुत किया। महासू वंदना के साथ श्गांव का रिवाज़श् जौनसारी संस्था की ओर से दी गई शानदार प्रस्तुति बहुत ही आकर्षण का केंद्र बनी रही। जौनसार बाबर सांस्कृतिक गांव का रिवाज संस्था, कालसी द्वारा प्रस्तुत जौनसार भावर का लोक नृत्य प्रदर्शन, क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक आकर्षक प्रदर्शन है। इस 20 सदस्यीय समूह का नेतृत्व गंभीर भारती ने किया भारती मुख्य गायक भी हैं। उनके साथ वाद्य यंत्रों पर रजत वर्मा दयाल कीबोर्ड पर, वेदांश ऑक्टोपैड पर, श्याम पुंडीर ढोलक पर और कपिल ने ढोल पर संगत की।
प्रदर्शन की शुरुआत भक्तिमय श्रद्धांजलि, महासू वंदना से हुई, पारंपरिक नृत्यों की एक जीवंत श्रृंखला नाटी,अरुल और तांडी की प्रस्तुति भी की गई। गंभीर भारती,विशाल भारती,रजत वर्मा दयाल,श्याम पुंडीर,अनुज खन्ना,नितेश खन्ना,बिट्टू वर्मा,नीलम खन्ना, काजल,संगीता,विशाल भारती,नितेश,प्रदीप रॉकस्टार,वेदांश,रवीन्द्र वर्मा, प्रियांशु,कपिल,चन्द्रप्रिया नेगी,दीक्षा,सुनील वर्मा टीम में सम्मिलित हैं। आज की संध्या में दीप प्रज्वलन होने के बाद महान कथक उस्ताद पंडित बिरजू महाराज की पोती शिंजिनी कुलकर्णी ने मनमोहक कथक प्रस्तुति के साथ मंच की शोभा बढ़ाई। उन्होंने अपने गायन की शुरुआत श्चार तालश् में शिव आराधना के साथ की। तत्पश्चात उनके आदरणीय दादा पंडित बिरजू महाराज द्वारा कथक की जटिल लय और सुंदरता को प्रदर्शित करते हुए तराना गाया गया। उनकी प्रस्तुति का समापन राग दरबारी में एक भावपूर्ण अभिनय के साथ हुआ। उनके साथ तबले पर शुभ महाराज, सितार पर विशाल मिश्रा, लयबद्ध पाठ (पद्धंत) प्रदान करने वाली अश्विनी सोनी और गायन पर जकी खान रहे।
कालका बिंदादीन वंश की नौवीं पीढ़ी में जन्मी शिंजिनी कुलकर्णी कथक किंवदंती पंडित बिरजू महाराज की पोती हैं। तीन साल की उम्र से शिंजिनी ने अपने दादा के संरक्षण में कथक का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। उनके अनुसार हमारे घर में इस कला को सीखना एक संस्कार है। शिंजिनी की पहली गुरु उनकी चाची ममता महाराज थीं, जिन्होंने परिवार के सभी बच्चों को बुनियादी प्रशिक्षण दिया। बाद में बिरजू महाराज उनके गुरु थे और उनके बाद उनके सबसे बड़े भाई पं. जयकिशन जी महाराज उनके गुरु रहें। वह इस विशाल विरासत का भार खूबसूरती से उठाती हैं, लेकिन वह कहती हैं कि उनकी विरासत एक व्यक्ति के लिए बहुत बड़ी है, पूरा कथक समुदाय उनकी विरासत को संभाल रहा है। अकादमिक रूप से एक उत्कृष्ट छात्रा शिंजिनी ने हाल ही में देश के प्रमुख कला कॉलेज, सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास ऑनर्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है।अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल करने के साथ-साथ उन्होंने अपना प्रशिक्षण भी पूरी लगन और ईमानदारी के साथ जारी रखा है। उन्होंने खजुराहो नृत्य महोत्सव, संकट मोचन समारोह, ताज महोत्सव, चक्रधर समारोह, कालिदास महोत्सव, कथक महोत्सव आदि जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में प्रदर्शन किया है। उन्होंने भारत के विभिन्न शहरों और न्यूयॉर्क जैसे विदेशों में कई एकल प्रदर्शन और समूह शो दिए हैं जिनमें सैन फ्रांसिस्को, ह्यूस्टन, मिनियापोलिस, बैंकॉक, तेहरान आदि कुछ नाम मुख्य हैं। विरासत में आज की शाम की आखिरी संध्या में मराठी नाट्य संगीतकार खास कलाकार साबित हुए। उनके द्वारा दी गई प्रस्तुति विरासत के सभी मेहमानों के दिलों को घर कर गई। दिलों को छू लेने वाले ओंकार दादरकर जी ने अपने हिंदुस्तानी गायन प्रदर्शन की शुरुआत राह यमन माई बड़ा ख़याल से की, जिसने दर्शकों को अपने कौशल से प्रभावित किया। उन्होंने एरी लाल मील का आकर्षक गायन भी किया। यही नहीं, धृत बदीश माई ननंद क्र बचन वा साहे ना जातष् भी मनमोहक एवं आकर्षित करने वाला रहा प् हारमोनियम पर धर्मनाथ मिश्रा, तबले पर मिथलेश झा और तानपुरा पर मोइन ख्वाजा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए अपनी संगत दी।
देश-विदेश में विख्यात सांस्कृतिक कलाकार ओमकार दादरकर मराठी नाट्यसंगीत के प्रतिपादकों के परिवार से हैं। उन्हें अपना प्रारंभिक मार्गदर्शन अपनी मौसी दिवंगत प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका माणिक वर्मा और उसके बाद राम देशपांडे से मिला। शास्त्रीय संगीत के लिए सीसीआरटी छात्रवृत्ति (दिल्ली) से सम्मानित होने के बाद उन्हें दादर-माटुंगा सांस्कृतिक केंद्र की गुरु-शिष्य-परंपरा की योजना के तहत पंडित यशवंतबुआ जोशी द्वारा प्रशिक्षित किया गया। संगीत विशारद और मराठी साहित्य और इतिहास में कला स्नातक श्री ओमकार दादरकर जुलाई 1999 में पंडित उल्हास कशालकर से कठोर तालीम प्राप्त करने के बाद एक विद्वान के रूप में आईटीसीएसआरए में शामिल हुए। उन्होंने विदुषी गिरिजा देवी और श्रीनिवास खले से हल्के शास्त्रीय रूप में भी प्रशिक्षण लिया। खास बात यह है कि इस विख्यात शख्सियत श्री ओमकार दादरकर ने पूरे भारत के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा और यूके में एक नियमित संगीत कार्यक्रम के कलाकार के रूप में तेजी से पहचान हासिल की है। भारत और नेपाल और कनाडा के अन्य प्रतिष्ठित कार्यक्रमों के अलावा कोलकाता, दिल्ली और मुंबई में आईटीसी संगीत सम्मेलनों में उनके प्रदर्शन को काफी सराहा गया। उन्हें प्रतिष्ठित दरबार महोत्सव यूके में उनके प्रदर्शन के लिए व्यापक रूप से सराहना मिली है। उनके कई पुरस्कारों में 2010 का प्रतिष्ठित उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार शामिल है, जो 35 वर्ष से कम उम्र के प्रतिभाशाली कलाकारों को संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रदान किया जाता है। वर्ष 2009 में आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार षण्मुखानंद हॉल-मुंबई-संगीत शिरोमणि पुरस्कार और वे चतुरंग प्रतिष्ठान द्वारा म्हैसकर फाउंडेशन मुंबई के सहयोग से दिए जाने वाले “चतुरंग संगीत शिष्यवृत्ति पुरस्कार” के पहले प्राप्तकर्ता हैं। इससे पहले वे मुंबई एजुकेशनल ट्रस्ट में संगीत प्रभारी के रूप में काम कर चुके हैं वर्ष 2010 में वे संगीतकार शिक्षक के रूप में वापस लौटे और वर्तमान में वे अकादमी में गुरु सुशोभित हैं।