गुमनामी का दंश झेल रहा ऐतिहासिक अश्वमेध यज्ञ

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देहरादून। देहरादून जिले में विकासनगर-कालसी के बीच बाड़वाला जगतग्राम स्थित ऐतिहासिक अश्वमेध यज्ञ स्थल वीरान पड़ा है। राज्य गठन के बीस वर्ष बीत जाने के बाद भी यह स्थल सरकारी उपेक्षा के चलते गुमनामी का दंश झेल रहा है। यहां पर कुणिंद शासक राजा शील वर्मन ने अश्वमेध यज्ञ किया था। पक्की ईंटों से बनी तीसरी सदी की तीन यज्ञ वेदिकाएं यहां मौजूद हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने इसे राष्ट्रीय स्मारक भी घोषित किया हुआ है लेकिन उसके बावजूद इसका विकास नहीं हुआ।
एएसआइ की ओर से वर्ष 1952 से 1954 के बीच किए गए उत्खनन कार्य के बाद यह स्थल प्रकाश में आया। उत्खनन में पक्की ईंटों से बनी तीसरी सदी की तीन यज्ञ वेदिकाओं का पता चला, जो धरातल से तीन-चार फीट नीचे दबी हुई थीं। इन यज्ञ वेदिकाओं को एएसआइ ने दुर्लभतम की श्रेणी में रखा था। तीन में से एक वेदिका की ईंटों पर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्णित सूचना के आधार पर जो एतिहासिक तथ्य उभरकर सामने आए, उनके अनुसार ईसा की पहली से लेकर पांचवीं सदी के बीच तक वर्तमान हरिपुर, सरसावा, विकासनगर और संभवत लाखामंडल तक युगशैल नामक साम्राज्य फैला था। वृषगण गोत्र के वर्मन वंश द्वारा शासित इस साम्राज्य की राजधानी तब हरिपुर हुआ करती थी। तीसरी सदी को इस साम्राज्य का उत्कर्ष काल माना जाता है, जब राजा शील वर्मन ने साम्राज्य की बागडोर संभाली। वह एक परम प्रतापी राजा थे, जिन्होंने जगतग्राम बाड़वाला में चार अश्वमेध यज्ञ कर अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया। इन्हीं अश्वमेध यज्ञों में से तीन यज्ञों की वेदिकाएं यहां मिली हैं, जबकि चैथा यज्ञ स्थल अभी खोजना बाकी है।
प्राचीन काल में शक्तिशाली राजाओं की ओर से अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ किया जाता था। इस यज्ञ में अनुष्ठान के पश्चात एक सुसज्जित अश्व छोड़ दिया जाता था। अश्व जहां-जहां से होकर भी गुजरता था, वह क्षेत्र स्वाभाविक रूप से अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा के अधीन हो जाता था। लेकिन, यदि किसी राजा ने उसे पकड़ लिया तो यज्ञ करने वाले राजा को उससे युद्ध करना पड़ता था। पुरातात्विक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण यह अश्वमेध यज्ञ स्थल वर्तमान में एएसआइ के अधीन होने के बावजूद भी उपेक्षित पड़ा हुआ है। यहां पहुंचने के लिए एक पगडंडीनुमा मार्ग है, जो एक निजी बाग से होकर गुजरता है। इस स्थल पर पेयजल जैसी मूलभूत सुविधा तक नहीं है। इस ऐहितासिक स्थल के आस-पास लगे एक-दो साइन बोर्ड के अलावा कहीं कोई बोर्ड नहीं लगा है। प्रचार-प्रसार के अभाव में यह ऐतिहासिक स्थल राज्य गठन के बीस वर्ष बीत जाने के बाद भी गुमनामी का दंश झेल रहा है। इस स्थल के बारे में कम लोगों को ही जानकारी है। अधिकांश लोग इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में अनविज्ञ हैं। इससे जुड़ी जानकारी से संबंधित सूचना पट्ट राजधानी देहरादून, तहसील मुख्यालय विकासनगर व कालसी में भी मौजूद नहीं हैं। राज्य सरकार पर्यटन पर विशेष फोकस किए हुए है, उसके बावजूद इतना महत्वपूर्ण स्थल गुमनामी का दंश झेल रहा है। न इसके बारे में कोई प्रचार-प्रसार किया गया है और न ही यहां मूलभूत सुविधाओं का विकास किया गया है। इस स्थल तक जाने के लिए एक अच्छे मार्ग की व्यवस्था तक नहीं है। आम के बगीचे के बीच एक उबड़-खाबड़ पगडंडी ही यहां जाने के लिए है। इस ऐहितासिक स्थल का स्कूल-काॅलेजों में पढ़ने वाले छात्र भ्रमण करते, यहां पर्यटक आते, लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है। अश्वमेध यज्ञ स्थल जगतग्राम बाड़वाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किए जाने बाद उम्मीद जागी थी कि यह स्थान पर्यटन मानचित्र पर विशिष्ठ स्थान पाएगा और इसका विकास होगा लेकिन स्थिति नहीं बदली।
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