वनस्पतियों में भी मानवीय संवेदनाएं जीवंत कर देती है कालिदास की रचनाएंः डॉ बिजल्वाण

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देहरादून। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के द्वारा महाकवि कालिदास जयंती मास महोत्सव के उपलक्ष्य में देहरादून में आभाषी संगोष्ठी संपन्न हुई। संगोष्ठी का शुभारंभ वैदिक मंत्रों के साथ डा. जीतराम भट्ट, निदेशक, प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान देहली सरकार तथा प्रो. मार्कण्डेय तिवारी, विभागाध्यक्ष, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली ने किया। इस अवसर पर सह वक्त डा. सुमन प्रसाद भट्ट, असिस्टेंट प्रोफेसर, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय ने कहा कि महाकवि कालिदास के ग्रंथों में भारतीय शिक्षा व्यवस्था का दिग्दर्शन होता है। कालिदास ने अपनी रचनाओं में भारत के स्वर्णकाल की शैक्षिक विशेषताओं का उल्लेख किया है। उन्होंने गुरु शिष्य संबंध, विभिन्न शिक्षण विधियों एवं शिक्षण सिद्धांतों का उल्लेख करके कहा कि शिक्षक को सदैव अपनी परीक्षा देने के लिए तैयार रहना चाहिए। कहा कि कालिदास ने पूर्वजन्म के संस्कारों के महत्व को स्वीकार करके कहा कि पार्वती ने पूर्व जन्म के संस्कारों के आधार पर सभी विधाओं पर अधिकार प्राप्त का लिया।
विशिष्ट अतिथि डा. रामभूषण बिजलवान ने कहा कि महाकवि कालिदास के बिना भारतीय काव्य सौंदर्य की कल्पना व्यर्थ है साथ ही उन्होंने कहा कि वृक्ष वनस्पतियों में भी मानवीय संवेदनाएं जीवंत कर देती है कालिदास की रचनाएं। महाकवि कालिदास ने गौमाता की महिमा को स्वीकार कर गौसेवा के विषय में महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार निःसंतान महाराज दिलीप ने गौसेवा करके संतान प्राप्त की वैसे ही आज भी सभी लोग गौसेवा करके अपना अभीष्ट प्राप्त कर सकते हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष, दिल्ली सरकार के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के निदेशक डा. जीतराम भट्ट ने कहा कि महाकवि कालिदास की कृतियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वह उस समय थी। उन्होंने कहा कि महाकवि कालिदास ने अपने ग्रन्थो में जिस कर प्रणाली का वर्णन किया है उस कर प्रणाली को आज के लिए सर्वोत्तम कर प्रणाली है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो मार्कण्डेय नाथ तिवारी जी ने कहा कि महाकवि कालिदास का सामाजिक चिंतन आज के समाज को दिशा प्रदान करने में पूर्णतया सक्षम है और कालिदास की शिक्षा दृष्टि विश्व की उत्कृष्ट शिक्षा विधि है। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता केन्द्रीय संस्कृतविश्वविद्यालय रणबीर परिसर के भाषा साहित्य संस्कृति विद्या स्थान के अध्यक्ष प्रो सतीश कुमार कपूर ने अपने वक्तव्य में कहा कि महाकवि कालिदास ने अपने ग्रन्थांे में समाज के रूपों का समुचित रीति से वर्णन किया है कालिदास अपने ग्रन्थो के माध्यम से समाज के सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक प्रेरक रहें हैं और उनकी प्रेरणा वर्तमान समाज को नई दिशा देने में सक्षम है। कार्यक्रम में दीपक थपलियाल ने वैदिक मंगलाचरण, आन्ध्र प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के आचार्य विशाल ने अतिथि परिचय, कार्यक्रम के सहसंयोजक डा आनन्द मोहन जोशी ने धन्यवाद ज्ञापन, डा महेश चन्द्र मासीवाल ने शान्ति पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन जनपद संयोजक उत्तराखण्ड-आयुर्वेद-विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सहायकाचार्य डा प्रदीप सेमवाल के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में देश की विविध संस्थाओं के अनेकों गणमान्य लोग शोध छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे हैं।

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